स्वनिर्मित साइडर

साइडर सेब के रस से निर्मित एक एल्कॉहलीय पेय है। भारत में आजकल हिमाचल प्रदेश में इसका काफी मात्रा में उत्पादन होने लगा है और यह बियर का अच्छा विकल्प है। मेरी पिछली पोस्ट में बतायी गयी घर पर रेड वाइन बनाने की विधि में ही सेब के रस का प्रयोग करके साइडर भी बनाया जा सकता है। नीचे कुछ चित्र, मेरे द्वारा बनाये गए साइडर के हैं जो मैंने जनवरी में बनाया था और लगभग ५ माह के परिपक्वन के बाद पिछले सप्ताह इसका उपभोग किया।

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घर बैठे बनायें रेड वाइन

पिछले ६ माह में मैंने रेड (ग्रेप) वाइन और हार्ड एप्पल साइडर बनाने पर कई प्रयोग किये जो अधिकतर सफल रहे और फलस्वरूप घर पर एक सस्ती, ठीकठाक स्वाद वाली व पूर्णतया जैविक वाइन उपलब्ध हुयी। यदि कानून की बात करें तो स्वयं, परिवार एवं मित्रों के उपभोग के लिये घर पर वाइन बनाना पूर्णतः वैधानिक है, बस इसे बेचा नहीं जा सकता है उसके लिये आबकारी विभाग से लाईसेंस लेने की आवश्यकता होती है। गुणवत्ता के मामले में ये वाइन भारतीय बाजार में उपमब्ध किसी भी रु ३००/७५० मिली और यूरोपियन बाज़ार में उपमब्ध किसी भी ४ यूरो/७५० मिली से सस्ती वाइन से बेहतर होती है। तो आइये जानते हैं इसे बनाने कि अपेक्षाकृत सरल और सुविधाजनक विधि:-

आवश्यक सामग्री: ट्रॉपिकाना १००% रेड ग्रेप जूस (४ लीटर), ताजा अंगूर (२५० ग्राम), चीनी या शहद (४०० ग्राम), एक अच्छी तरह से बंद हो सकने वाला प्लास्टिक का जरीकेन (५ लीटर)
अन्य वैकल्पिक सामग्री: रेड वाइन यीस्ट, वाइन कार्बोय
किण्वन समय: २ से ३ सप्ताह
परिपक्वन समय: २ से ६ माह
तैयार रेड वाइन: ४ लीटर
एल्कोहॉल प्रतिशत: १० से १२ % (विशिष्ट घनत्व द्वारा अनुमानित परिमाण)
लागत: ७० से १०० रु प्रति ७५० मिली लीटर

यहाँ बताई गयी विधि का उद्देश्य सर्वश्रेष्ठ वाइन नहीं बल्कि सबसे आसानी से बनाई जा सकने वाली औसत वाइन है। अंगूर को मसलकर उससे रस निकालने की झंझट से बचने के लिये एक सरल उपाय है कि बाजार में उपलब्ध परिष्कृत रेड ग्रेप जूस (जैसे ट्रॉपिकाना, रियल, फ्रेशगोल्ड आदि) प्रयोग किया जाय। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि जूस में कोई भी प्रिज़र्वेटिव नहीं मिला हो और अच्छे परिणाम के लिये १००% फ्रूट जूस ही प्रयोग करें। सामान्यतया जूस में १५० से १६० ग्राम प्रति लीटर शर्करा होती है। जबकि किण्वन के फलस्वरूप पर्याप्त मात्रा में एल्कोहॉल बनने के लिये मातृद्रव में शर्करा की मात्रा लगभग २५० ग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए। इसकी आपूर्ति जूस में उपयुक्त मात्रा में चीनी या शहद मिला कर पूरी की जा सकती है। प्रयोग में लाई जाने वाली सभी वस्तुओं की सफाई का ध्यान देने की विशेष आवश्यकता होती है। इसके लिये पूरे प्रक्रम में केवल स्वच्छ जल (आर. ओ. वाटर यदि उपलब्ध हो तो) प्रयोग में लायें। सर्वप्रथम सभी बर्तनों को गर्म पानी से धो लें। तत्पश्चात ४ लीटर जूस और ४०० ग्राम चीनी या शहद को ५ ली के प्लास्टिक के जरीकेन में डालकर अच्छी तरह से हिलाए ताकि शर्करा भली भाँति घुल जाय। शहद यद्यपि चीनी से महंगा होता है परन्तु अपेक्षाकृत बेहतर वाइन बनाता है। अब इसमें यदि उपलब्ध हों तो वाइन यीस्ट अथवा कुछ ताजे धुले हुये अंगूर मसलकर कर दाल दें और एक बार फिर से अच्छी तरह से हिलायें। अंगूर की खाल में जंगली यीस्ट होता है जो कि रस के किण्वन में भाग लेता है। इसके बाद जरीकेन को अच्छी तरह से बंद कर दें ताकि हवा अंदर न जा सके; साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि किण्वन के फलस्वरूप बनाने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड धीरे धीरे रिस कर बाहर निकल सके। किण्वन के लिये उपयुक्त तापमान १८ से २४ डिग्री सेंटीग्रेड होता है अतः पात्र को अँधेरे व ठन्डे स्थान पर किण्वन के लिये रख दें। २ से ४ दिन के भीतर किण्वन शुरू हो जाता है और कार्बन डाई ऑक्साइड के बुलबुले और द्रव सतह पर उपस्थित झाग देखा जा सकता है। हर २-३ दिन में पात्र का अवलोकन करते रहें और यह सुनिश्चित कर लें कि कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बाहर निकल पा रही है। करीब ३ सप्ताह में गैस के बुलबुले दिखना बंद हों जाते हैं और उसके करीब १ सप्ताह बाद यानि कुल १ माह के बाद प्राथमिक किण्वन संपन्न हो जाता है। अब वाइन को प्लास्टिक के पात्र से साइफन द्वारा निकाल कर (ताकि नीचे बैठा अवसाद विचलित न हो) काँच की बोतलों में परिपक्वन के लिये रखा जा सकता है। किण्वन के दौरान बना एल्कोहॉल परिपक्वन के समय वाइन में बची शर्करा व अन्य अवयवों से घुल मिलकर एक अच्छी वाइन को जन्म देता है। परिपक्वन के लिये भी सामान ठन्डे और अँधेरे वातावरण का प्रयोग करना चाहिए। परिपक्वन का समय न्यूनतम २ माह से अधिकतम ६ माह तक हो सकता है। इससे अधिक समय तक परिपक्वन से वाइन के ऑक्सीकरण का खतरा रहता है जिसके फलस्वरूप वाइन सिरके (Vinegar) में परिवर्तित होने लगती है और पीने योग्य नहीं बचती। नीचे दिए गए चित्र में किण्वन पात्र और परिपक्वन के रखी गयी बोतलें देखी जा सकती हैं।

किण्वन और परिपक्वन के पश्चात तैयार वाइन के उपभोग से पूर्व एक और गुणवत्ता परीक्षण की आवश्यकता है। सर्वप्रथम इसे सूंघकर देखें कि इसमें से वाइन की ही महक आ रही है अन्य कोई तीखी, आपत्तिजनक या सड़न की नहीं। यदि सब ठीक है तो फिर इसका स्वाद लेकर देखें। सामान्यतः होने वाली कमियों में से प्रमुख हैं वाइन का अधिक मीठा होना, अधिक खट्टा होना या खराब स्वाद होना। वाइन अधिक मीठी होने का कारण है किण्वन पूरा होने से पूर्व ही यीस्ट निष्क्रिय हों जाना, इस वाइन को पीने योग्य बनाने के लिये इसमें स्वच्छ जल मिलायें। वाइन के खट्टे होने का कारण इसका ऑक्सीकरण है जिससे बचने के लिये सम्पूर्ण प्रक्रम में वाइन के वायु से संपर्क को न्यूनतम रखना चाहिए। स्वाद खराब होने का अर्थ है कि किण्वन के दौरान यीस्ट के अतिरिक्त अन्य बैक्टीरिया भी पनपने लगा है, इससे बचने कि लिये सफाई का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है।

स्वादिष्ट पकवान बनाने की भाँति ही वाइन बनाना भी एक कला है जिसमें महारथ पाने के लिये कई प्रयोग और सतत रूचि एवं विश्वास की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार रेसेपी पढ़ कर सभी लोग एक बार में शेफ नहीं बन जाते उसी प्रकार वाइन बनाने में भी पारंगत पाने के लिये कई प्रयास करने होते हैं। सफलता की कुंजी हैं रूचि, लगन और विश्वास। इसी विधि के प्रयोग से अन्य बिना खट्टे (non-citrus) फलों जैसे सेब, नाशपाती, आलूबुखारा, बेर, आड़ू, लीची इत्यादि की वाइन भी बनाई जा सकती है।

यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो आपकी पहली वाइन आपको मुबारक। 🙂

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म्यूनिख शहर और यहाँ की बियर

म्यूनिख (Munich or München) दक्षिण जर्मनी का सबसे बड़ा शहर और बवेरिया (Bavaria or Bayern) प्रदेश की राजधानी है। एक प्रमुख औद्योगिक नगर होने के साथ ही यह दुनिया के सबसे बड़े बियर उत्सव ओक्टोबर्फेस्ट (Oktoberfest) के लिए भी जाना जाता है। सितम्बर और अक्टूबर माह में होने वाले इस उत्सव में दुनिया भर से करीब ५० से ६० लाख लोग इस उत्सव के लिये बनाई गई विशिष्ट बियर का आनंद लेने यहाँ आते हैं। इसी कारण से इसे विश्व की बियर राजधानी (beer capital of the world) भी कहा जाता है। गत माह मैं करीब एक सप्ताह के लिए म्यूनिख गया था जिससे मुझे वहाँ की बियर और संस्कृति के बारे बहुत कुछ जानने को मिला, तो आइये इस पोस्ट में प्रस्तुत है म्यूनिख बियर (Münchener Bier) की कुछ ख़ास बातें।

जर्मनी और ख़ासकर बवेरिया में बियर लगभग सभ्यता जितनी ही पुरानी है। यहाँ की कई ब्र्यूवरी ५०० से अधिक वर्ष पुरानी हैं, और कुछ तो ८०० से लगभग १००० वर्ष। औद्योगिक स्तर पर बड़ी मात्रा में बनाई जाने वाली लागर (lager) बियर से सम्बंधित बहुत से अन्वेषण और प्रक्रम विकास कार्य म्यूनिख के आसपास की ब्र्यूवरी और युनिवर्सिटी में ही हुये। यहाँ पर मुख्यतः लागर बियर ही बनाई जाती है और बियर में भिन्नता और अनूठापन लाने के बजाय एक लगभग नियत अच्छे स्वाद और मात्रा पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसीलिये यहाँ के बार और रेस्त्राँ में १ लीटर या आधा लीटर के बियर मग ही देखने को मिलते हैं। बियर बोतल भी ३३० मिली के बजाय ५०० मिली की होती है। बियर में एल्कोहॉल प्रतिशत सामान्यतः लगभग ५ से ६ के बीच होता है जबकि ओक्टोबर्फेस्ट के लिये बनायी जाने वाली बियर लगभग २% अधिक सशक्त होती है। इसके अतिरिक्त म्यूनिख अपने विशाल बियर गार्डन (Biergarten) और बियर हॉल के लिये भी जाना जाता है जिनकी प्राचीन काल से जनसभाओं और जन आन्दोलन में एक प्रमुख भूमिका रही है। हिटलर के नेतृत्व में नाज़ी पार्टी द्वारा १९२३ में किया गया असफल विद्रोह जो कि इतिहास में बियर हॉल पुच (Beer Hall Putsch) के नाम से जाना जाता है यहीं के एक बियर हॉल बर्गरब्राऊकेलर (Bürgerbräukeller) में हुआ था जो कि अब अस्तित्व में नहीं है। हौफ़ब्रौहौस (Hofbräuhäus) एक और बियर गार्डन है जोकि विश्व में सबसे प्रसिद्द बियर हॉल कहा जाता है। आजकल म्यूनिख के अतिरिक्त अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इटली आदि कई अन्य देशों में इसकी शाखाएं हैं। म्यूनिख शहर में लगभग आधा दर्जन बड़ी ब्र्यूवरी हैं और सभी में एक बियर गार्डन/हॉल है। यहाँ की प्रमुख ब्र्यूवरी हैं: ऑगस्टीनरब्राऊ (Augustiner Bräu), हौफ़ब्राऊ (Hofbräu), पॉलनर (Paulaner), लोवेनब्राऊ (Löwenbräu), हैकर-शुर्र (Hacker-Pschorr) और स्पाटेन-फ्रैन्जिस्कनर ब्राऊ (Spaten-Franziskaner-Bräu)। यही ब्र्यूवरी अपने विशालकाय टेन्ट ओक्टोबर्फेस्ट में लगाती हैं जिनमें उत्सव के लिये बनाई गयी विशिष्ट बियर पी जा सकती है। इसके अलावा कुछ अन्य प्रमुख बवेरियन बियर हैं: बेक्स (Beck’s), वीहनस्टेफनर (Weihenstephaner), एरडिंगर (Erdinger), क्रौंबाकर (Krombacher) और ऑटिन्जर (Oettinger)। इनमें से वीहनस्टेफनर संभवतः विश्व की सबसे पुरानी ब्र्यूवरी है जोकि १०४० इसवी से लगातार कार्यरत है। आजकल यह तकनीकी युनिवर्सिटी म्यूनिख (Technische Universität München, Weihenstephan) का एक भाग है और बियर उत्पादन प्रक्रम के विकास के लिये होने वाले अनुसंधानों के लिये जानी जाती है।

लगभग सभी ब्र्यूवरी प्रमुख बवेरियन स्टाइल बियर बनाती हैं जिनमे मुख्य हैं:

पिल्स (Pils) या पिल्ज्नर (Pilsner): सबसे अधिक मात्रा में बनाने वाली हल्के रंग की बियर जोकि चेक गणराज्य की पिल्ज्नर बियर की प्रतिरूप है।
हेल (Hell) या हेलस (Helles): जर्मन में हेलस का मतलब हल्का होता है, यह हल्के रंग की लागर बियर है।
डंकल (Dunkle): जर्मन में डंकल का अर्थ होता है गहरा, अतः ये भुने हुये अनाज के बनी गहरे रंग की लागर बियर है।
वेयज़ेन (Weizen): ये जौ के स्थान पर गेहूँ से बनाई जाने वाली बियर है और यहाँ की एक मात्र ऊपरी किण्वन (top fermenting) वाली बियर है। गेहूँ में भूसे की मात्रा कम होने के कारण इससे बना मातृद्रव (wort) अधिक चिपचिपा और गाढ़ा होता है अतः यह सतत बियर उत्पादन के प्रक्रम में सामान्यतः उपयुक्त नहीं माना जाता है। भूसा साथ ही बियर का स्वनिष्पंदन करके उसे पारदर्शी भी बनाने का काम करता है। इस सब के बावजूद गेहूँ की बियर के उत्पादन का कारण है इसका एक अलग ताजगी भरा स्वाद। पारदर्शी न होने के कारण इसे व्हाईट बियर (Weissbier) भी कहते हैं। हालाँकि अब नए विकसित विशिष्ट प्रक्रम से इसे छनित करके पारदर्शी भी बनाया जा सकता है।
मार्जेन (Märzen) और ऑक्टोबरफ़ेस्टबीयर (Oktoberfestbier): ये मुख्यतः उत्सव के बनाई जाने वाली बियर है जिसे अधिक समय तक रखने के उद्देश्य से या तो अधिक एल्कोहॉल या अधिक होंप्स डाल कर बनाया जाता है।
एल्कोहॉलफ्री (Alkoholfrei): जैसा कि नाम से जाहिर है, इन बियर में से किण्वन के पश्चात एल्कोहॉल निकालकर उसका प्रतिशत ०.५ % से कम के स्तर पर लाया जाता है। स्वाद गंध इत्यादि में सामान्य बियर से इनमें कोई भिन्नता नहीं होती है, और इसे कई मौकों पर जब एल्कोहॉल नहीं चाहिए होता, पिया जा सकता है जैसे कि शारीरिक श्रम या खेलने के पूर्व या तुरंत बाद और गाड़ी या अन्य भारी मशीन चलाने से पूर्व या गर्भवती महिलायें इत्यादि।

munchener bier

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बेल्जियन बियर

वैसे तो यूरोप के कई देशों की गिनती बियर प्रधान देशों में की जाती है परन्तु बेल्जियम की बात ही कुछ और है। इसी वजह से बेल्जियम को बियर का स्वर्ग (Beer Paradise) कहा जाता है। पिछले माह मुझे बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स की यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। यह पोस्ट मुख्यतः मेरे वहाँ जाने से पूर्व किये गये अनुसंधान और वहाँ जाकर किये गये अनुभव पर आधारित है। बेल्जियम पश्चिमी यूरोप में, फ्रांस के उत्तर, जर्मनी के पश्चिम और नीदरलैंड्स के दक्षिण में स्थित एक छोटा देश है। बियर के अतिरिक्त बेल्जियम की चॉकलेट भी विश्व प्रसिद्ध हैं, फिलहाल इस पोस्ट में केवल बियर की ही चर्चा करेंगे।

बेल्जियम में बड़ी बियर उत्पादक कम्पनियों के साथ साथ बहुत सी छोटी और स्वतंत्र कम्पनियाँ भी हैं। यहाँ करीब 125 माइक्रो-ब्र्यूवेरी हैं जो 800 से अधिक प्रकार की बियर बनाती हैं। यहाँ पर किसी बार के मीनू में यदि 400 से अधिक बियर मिल जायें तो इसमें कोई चौंकने वाली बात नहीं है। ड़ेलिरियम केफ़े में तो 2000 से अधिक ब्रांड्स की बियर मिलती हैं। बेल्जियन बियर में एल्कॉहल प्रतिशत भी अन्य बियर की तुलना में अधिक होता है। 8-9% प्रतिशत की बियर मिलना काफी साधारण बात है जबकि कुछ बियर में एल्कॉहल 11 या 12 % भी हो सकता है। बेल्जियन बियर के बारे दूसरी असामान्य बात यह है कि बहुत सी बियर पास्चुराइस्ड और पूरी तरह से छनित नहीं होती जिससे बोतल में भी उनका थोड़ा बहुत किण्वन जारी रहता है और बोतल के तल में अवसाद (sediment) पाया जाता है।

बेल्जियन बियर को मुख्यतः निम्न वर्गों में बाँट सकते हैं:

लैम्बिक (Lambic): इसे बेल्जियम की सबसे विशिष्ट बियर कहा जा सकता है। ये बेल्जियम की सेने घाटी (Senne valley), जिसमें ब्रसेल्स भी स्थित है, के वातावरण में मौजूद जंगली यीस्ट के किण्वन से बनाई जाती है तथा इसमें प्रयुक्त हॉप्स भी बासी होते हैं। सामान्यतः 3 से 5 वर्ष तक इसे लकड़ी के पीपों में परिपक्वित किया जाता है। इनका स्वाद इतना अम्लीय और खट्टा होता है कि पहली बार बहुत से लोग अचम्भित हो जाते हैं। अक्सर इन्हें कई फलों जैसे चेरी, स्ट्रॉबेरी आदि के साथ भिगो कर उन फलों के स्वाद पर आधारित किया जाता है। 1860 में लुई पास्चर द्वारा यीस्ट के विभिन्न प्रकारों के विकास से पहले सभी बियर इसी विधि से बनाई जाती थीं। लैम्बिक बियर अधिकांशतः शुद्ध रूप में नहीं पी जाती है और यदि पी भी जाती है तो 1 या 2 वर्ष तक परिपक्वन वाली। मुख्यतः दो या अधिक वर्षों की लैम्बिक बियर को मिलाकर या फलों के साथ मिलाकर इन्हें पिया जाता है। अलग अलग वर्षों की पुरानी मिश्रित लैम्बिक बियर को गॉज़ (Geuze) कहते हैं। इसमें नई लैम्बिक (कम वर्षों के लिये परिपक्वित) बियर में मिठास और फलों का स्वाद देती है जबकि पुरानी लैम्बिक बियर में खटास और अनूठा स्वाद लेकर आती है। गॉज़ सबसे अधिक बिकने वाली लैम्बिक बियर है। इसे बियर की दुनिया की शैम्पेन भी कहते हैं। मोर्ट सुबाइट (Mort Subite), कैन्टिलॉन (Cantillon) और टिमरमन्स (Timmermans) कुछ प्रमुख गॉज़ ब्रांड्स हैं। इसके अलावा फ़ैरो (Faro), क्रिक (Kriek) और फ़्रैम्बोज़ेन (Frambozen) अन्य लैम्बिक बियर हैं जो इसमें क्रमशः चीनी, चेरी और रेस्पबेरी मिला कर बनाई जाती हैं।

ट्रैपिस्ट और ऐबी बियर (Trappist and Abbey Beers): ट्रैपिस्ट बियर बेल्जियम की दूसरी सबसे प्रमुख बियर है। ट्रैपिस्ट एक रोमन कैथलिक धार्मिक नियमावली है जो कि संत बेनेडिक्ट को मानते हैं। ट्रैपिस्ट बियर, ट्रैपिस्ट महन्तों (Trappist monks) द्वारा अथवा उनके नियंत्रण वाली ब्र्यूवरी में बनाई गयी बियर को कहते हैं। इसके बारे में यह कहा जाता है कि “Probably the only good thing to come out of religion” 🙂 । दुनिया भर में केवल 7 ट्रैपिस्ट मठ (monasteries) बियर का उत्पादन करते हैं जिनमें से 6 बेल्जियम में और 1 नीदरलैंड्स में है। अकेल (Achel), चिमे (Chimay), ऑर्वेल (Orval), रॉकफोर्ट (Rochefort), वेस्टमाल (Westmalle) और वेस्टव्लेटेरेन (Westvleteren) बेल्जियम की तथा ला ट्रैप (La Trappe) नीदरलैंड्स की ट्रैपिस्ट बियर है। इसके अलावा बहुत सी व्यवसायिक कम्पनियाँ भी किसी मठ (Abbey) से वास्तविक या काल्पनिक सम्बन्ध होने के आधार पर बियर बनाती हैं जो ट्रैपिस्ट बियर से मिलती जुलती होती हैं इन्हें ऐबी (Abbey) बियर कहते हैं। लफ़े (Leffe) और ग्रिमबर्गन (Grimbergen) अच्छी ऐबी बियर हैं।

ट्रैपिस्ट और ऐबी बियर में डबल (double), ट्रिपल (triple) और क्वाड्रपल (quadruple) मुख्यतः बियर में एल्कॉहल की मात्रा के प्रतीक होते हैं। डबल में जहाँ 6-8% एल्कॉहल होता है वहीं ट्रिपल में 7-11% और क्वाड्रपल में 10-12% एल्कॉहल होता है। दूसरी ओर ब्लांड (blond) या ब्रून (bruin) बियर के रंग को प्रदर्शित करते हैं।

ब्राउन एल / रेड (Brown Ale / Red): ये उत्तरी पूर्वी बेल्जियम की प्रमुख बियर है और इसकी स्वाद में लैम्बिक से कई समानतायें हैं। लैम्बिक की भाँति इसके भी कुछ प्रकार फलों के साथ मिलाकर बनाये जाते हैं। चार्ल्स क्विंट (Charles Quint/Keizer Karel) एक काफ़ी प्रचलित ब्राउन एल है।

गोल्डन एल / ब्लांड (Golden Ale / blond): इनका रंग हल्का लगभग किसी भी सामान्य लागर बियर जैसा होता है परन्तु एल्कॉहल 7-9% तक होता है। डुवेल (Duvel) इस वर्ग की एक प्रमुख बियर है।

उपर्युक्त बियर के अलावा कुछ प्रमुख बेल्जियन लागर बियर हैं स्टेला आर्टोइस (Stella Artois), ज़ूपिलर (Jupiler), मास पिल्स (Maes Pils) और हॉगार्डेन (Hoegaarden), जो कि सस्ती और बड़े पैमाने पर बनाई जाने वाली बियर हैं, फलस्वरूप इनकी उपलब्धता बेल्जियम के बाहर भी काफ़ी अधिक है। यद्यपि इनके स्वाद और सुगन्ध में विविधता और विशिष्टता की कमी है।

बेल्जियन बियर

बेल्जियन बियर के बारे में और अधिक जानकारी निम्न पतों पर उपलब्ध है:

बियर प्लानेट: इस दुकान पर 800 से अधिक प्रकार की बेल्जियन बियर मिलती हैं।

The Belgian Beer Odyssey: यहाँ पर आप बेल्जियन बियर की समीक्षा पढ़ सकते हैं। अब तक 100 बियर प्रस्तुत की जा चुकी हैं।

Belgian Beers: एक और बेल्जियन बियर समीक्षा वेबसाइट।

A Beginner’s Guide to Belgian Beer: बेल्जियन बियर के बारे में संक्षिप्त प्रारम्भिक जानकारी (इस पोस्ट के कुछ तथ्य यहाँ से उद्धृत हैं)

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प्रमुख लागर बियर

इस पोस्ट में कुछ प्रमुख लागर बियर के बारे में जानते हैं। लागर बियर बनाने में ऐसा यीस्ट प्रयोग में लाया जाता है जो नीचे अर्थात मातृद्रव के सतह में किण्वन करता है। यह अपेक्षाकृत कम तापमान पर बनाई जाती है जिससे कि इसमें ईस्टर इत्यादि नहीं बनते हैं और बियर में फलों जैसा स्वाद नहीं आ पाता है। 20 वीं सदी के मध्य में सतत किण्वन विधि के विकसित होने से लागर बियर का उत्पादन औद्योगिक स्तर पर बहुतायत में होने लगा और इसने व्यापार के मामले में एल बियर को कहीं पीछे छोड़ दिया। जर्मन शब्द ‘लागर’ का अर्थ होता है ‘भण्डारण’। इस बियर की सफलता का राज इसके स्वाद में नियमितता, साफ रंग और लम्बे समय तक संचयित करके रखे जाने की क्षमता है। लागर बियर के प्रकार मुख्यतः उनके प्राथमिक उत्पादन स्थल या विशिष्ट विधि के नाम पर निर्भर करते हैं।

पेल लागर (Pale lager): हल्के पीले से सुनहरे रंग की यह बियर सबसे अधिक बनायी जाने वाली लागर है। इसे बनाने की विधि पेल एल के उत्पादन से उद्धृत होने के कारण इसे पेल लागर कहते हैं। अमेरिकी बियर बडवाइज़र (जो अब भारत में भी उपलब्ध है) इसी प्रकार की बियर है।

बॉक (Bock): बॉक एक स्ट्रॉंग लागर बियर है जो सर्वप्रथम 14वीं सदी के जर्मन शहर आइन्बेक (Einbeck) में बनाई जाती थी। वहीं से इसका नाम पहले आइन्बॉक (Einbock) और फिर बॉक पड़ा। इसका रंग सामान्यतः गहरा काला, लाल या अम्बर होता है और ये सामान्य बियर से अधिक भारी होती है।

पिल्ज़नर (Pilsner): यह एक प्रकार की पेल लागर बियर है जो चेक गणराज्य के पिल्ज़ेन (Pilsen) शहर के नाम पर आधारित है। इसमें हॉप्स का स्वाद पेल लागर से कहीं अधिक और अलग होता है। सामान्यतः विशिष्ट पेल लागर को इस श्रेणी मे रखा जाता है। इसे पिल्स (Pils) भी कहते है।

डंकल (Dunkel): यह स्टाउट बियर की भांति ही एक गहरे रंग की माल्टी (malty) बियर है, अन्तर बस इतना कि यह लागर बियर है। जर्मन में डंकल (Dunkel) का अर्थ है गहरा (dark)। यह जर्मनी के म्यूनिख़ शहर की परम्परागत बियर है।

इसके अलावा अमेरिकन स्टाइल लागर (American-style lager), वियना लागर (Vienna lager) इत्यादि कुछ अन्य प्रमुख लागर बियर हैं।

अगली पोस्ट बेल्जियन बियर के बारे में… 🙂

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पुराने ब्रिटिश साम्राज्य की बियर

पिछले दिनों मैने पुराने ब्रिटिश साम्राज्य की बियर के बारे में एक अच्छा लेख पढ़ा। यदि आप बियर पर मेरी पुरानी सभी पोस्ट पढ़ चुके हैं तो यह लेख खासकर आपको पसन्द आयेगा। यह लेख दो भागों में लिखा गया है जहाँ पहले भाग में पेल एल का जिक्र है वहीं दूसरे भाग में डार्क एल बियर के बारे में बताया गया है। कुल मिलाकर यह काफ़ी जानकारी और रोचक तथ्यों से भरा है और बियर प्रशंसकों को पसन्द आयेगा।

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दिल्ली में विदेशी मदिरा के दाम की सूची

दिल्ली प्रदेश औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास प्राधिकरण (Delhi State Industrial & Infrastructure Development Corporation Ltd / DSIIDC) की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार दिल्ली प्रदेश में विदेशी आयातित मदिरा (Imported Liquor) और भारत में बनी विदेशी मदिरा (IMFL) के दाम नीचे दिये गये लिंक पर देखे जा सकते हैं।

आयातित मदिरा :
http://www.dsiidc.org/dsidc/upload/ratefl.txt

आई एम एफ़ एल :
http://www.dsiidc.org/dsidc/upload/rate.txt

साथ ही इस वेबसाइट पर दिल्ली सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त दुकानों की सूची भी उपलब्ध है।
http://www.dsiidc.org/dsidc/liquorshop.html

किसी भी प्रकार की अनियमितता के लिये इस साइट के माध्यम से शिकायत भी दर्ज की जा सकती है।

उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग द्वारा निर्धारित अधिकतम मदिरा मूल्य सूची यहाँ से डाउनलोड की जा सकती है।

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History of Beer

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कुछ प्रसिद्घ एल

एल ऊपरी किण्वन करने वाले यीस्ट (top fermenting yeast) से बनाई जाती है तथा इसका किण्वन सामान्य से अधिक ताप (15-23 oC) किया जाता है। अधिक ताप पर एल बियर यीस्ट प्रचुर मात्रा में ईस्टर (esters) बनाता है जिसकी वजह से बियर में सेब, नाशपाती, अनन्नास, केला, सूखी घास, बेर और आलूबुखारे इत्यादि से मिलती जुलती सुगन्ध और स्वाद आते हैं। इस पोस्ट में कुछ प्रचलित एल बियर के बारे में जानते हैं।

पेल एल (Pale Ale): यह हल्के रंग के अनाज से बनाई गयी एल है जिसका रंग 8 से 14 oSRM के बीच होता है। यद्यपि आजकल मिलने वाली कई बियर इससे हल्के रंग की होती है, परन्तु इसका नामकरण समकालीन ब्रिटिश पोर्टर और अन्य गहरे रंग की बियर की तुलना में किया गया था। इंगलैण्ड की बिटर (Bitter), स्कॉटलैंड की हैवी (Heavy) और इंडिया पेल एल (India Pale Ale/IPA), अमेरिका की अमेरिकन पेल एल (American Pale Ale) और जर्मनी की आल्ट्बीयर (Altbier या Alt) कुछ प्रमुख पेल एल हैं।

इनमें से इंडिया पेल एल (India Pale Ale/IPA) 17 वीं सदी में भारत में तैनात ब्रिटिश सैनिकों के लिये बनायी गयी बियर थी जिसमें साधारण से अधिक मात्रा में हॉप्स का प्रयोग किया जाता था ताकि लम्बी समुद्री यात्रा के बाद भी बियर खराब न हो। उस समय यह बियर केवल भारत को निर्यात के लिये ही बनाई जाती थी। परन्तु धीरे धीरे ब्रिटिश सैनिकों को इस बियर का स्वाद अच्छा लगने लगा और वापस लौटकर भी उन्होंने इसकी मांग की और आज भी यह बियर इंडिया पेल एल (India Pale Ale) या आई पी ए (IPA) के नाम से मिलती है। ये बियर सामान्य से अधिक कड़वी होती है और इसका IBU 40 से अधिक होता है।

पोर्टर (Porter): यह गहरे रंग के अनाज से बनी एल बियर है जिसका नाम 18वीं सदी में लंदन के स्ट्रीट और रिवर पोर्टर (सामान वाहक) के नाम पर पड़ा। अधिक एल्कॉहल वाली पोर्टर को स्ट्राँग पोर्टर, डबल पोर्टर या स्टाउट पोर्टर कहा जाता था जो कि आगे चलकर सिर्फ़ स्टाउट (Stout) कहा जाने लगा। आयरलैंड की गिनेस (Guinness) एक एक्सट्रा स्टाउट बियर है। इसका रंग 17 से 40 oSRM के बीच और IBU 18 से 50 तक होता है। इन बियर में अधिक मात्रा में माल्ट के प्रयोग से ये सामान्य से भारी होती हैं (विशिष्ट घनत्व 1.066 – 1.095)।

बार्ली वाइन (Barley wine): इनमें एल्कॉहल प्रतिशत 9 -12 तक (वाइन के बराबर) होता है अतः इसे बार्ली वाइन बोला जाता है परन्तु फलों के बजाय अनाज (जौ) से बनाई जाने के कारण यह एक बियर ही है। इसका रंग 12 से 24 oSRM के बीच और IBU 50 से 100 तक होता है। ये बियर 1.090 – 1.120 विशिष्ट घनत्व तक के मातृद्रव से बनायी जाती हैं जो कि सामान्य से काफी अधिक है।

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बियर के प्रकार

बियर के प्रकार या सही मायने में इसे शैली कहें तो मुख्यतः दो भागों में बाँट सकते हैं। एल (Ale) और लागर (Lager)। जैसा कि मैनें बियर पर अपनी पहली पोस्ट में भी लिखा था कि एल ऊपरी किण्वन करने वाले यीस्ट (top fermenting yeast) से बनाई जाती है जबकि लागर नीचले किण्वन करने वाले यीस्ट (Bottom fermenting yeast) से बनाई जाती है। बड़ी मात्रा में औद्योगिक स्तर पर बनाई जा सकने के कारण लागर बीयर सस्ती और अधिक प्रचलित होती है। इसके विपरीत एल बियर साधारणतः छोटे स्तर पर बनाई जाती है और अपेक्षाकृत महंगी होती है। यह वर्गीकरण तो हुआ बियर बनाने वाले यीस्ट के आधार पर। इन दोनों ही प्रकार की बियर में बनाने की विधि, रंग, स्वाद, अवयव, इतिहास और मूल स्थान के कारण और कई विविधतायें पायी जाती हैं। इस पोस्ट में हम बियर की इन्ही विविधताओं के बारे में जानते हैं।

कुछ प्रमुख एल हैं – ब्राउन एल (Brown Ale), पेल एल (Pale Ale), पोर्टर (Porter), स्टाउट (Stout), बार्ली वाइन (Barley Wine), बेल्जियन ट्रिपल (Belgian Trippel), बेल्जियन डबल (Belgian Dubbel) और व्हीट बियर (Wheat beer)।

प्रमुख लागर हैं – अमेरिकन स्टाइल लागर (American-style lager), बॉक (Bock), डंकल (Dunkel), हेलेस (Helles), ऑक्टोबरफ़ेस्टबीयर (Oktoberfestbier), पिल्ज़नर (Pilsner), श्वार्ज़बीयर (Schwarzbier) और वियना लागर (Vienna lager)।

इसके अलावा बेल्जियन लैम्बिक (Belgian Lambic), स्टीम बियर (Steam Beer), फ्रूट और वेजिटेबल बियर, हर्ब्स और स्पाइस्ड बियर इत्यादि कुछ अन्य प्रकार की बियर हैं।

इसके अलावा बियर शब्दावली में दो और नाम प्रसिद्ध हैं ड्रैफ़्ट बियर (Draught Beer) और क्राफ़्ट बियर (Craft Beer)। ड्रैफ़्ट बियर बड़े बंद बर्तन, जिसे केग (Keg) कहते हैं, में लगे नल (tap) से निकाल कर पी जाती है। अत: सामान्यतः बार या पार्टी में देखी जाती है। छोटी ब्र्यूवरी में सीमित मात्रा में बनी बियर को क्राफ़्ट बियर कहते हैं।

आने वाली पोस्टों में इस पोस्ट में बताई गयी कुछ बियर के बारे में और जानकारी लेंगे।

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